Saturday, February 24, 2018

AIDS AND ASTROLOGY

            इस विषय पर विशेषज्ञतापूर्ण तरीके से कुछ कहना तो उचित नहीं होगा लेकिन हाँ यदि     एड्स के लक्षणों और ग्रहों के लक्षणों को मिलाने का प्रयत्न करें तो कुछ पौराणिक घटनाओं के     सहयोग से इसे  समझने का प्रयत्न किया जा सकता है, कि कौन से ग्रह इस रोग के लिए जिम्मेदार हो  सकते हैं और किस प्रकार के तरीकों से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है. यदि श्री गणेश की अनुकम्पा हुई  तो वह दिन भी दूर नहीं जब ज्योतिष,योग और आयुर्वेद मिलकर इस सर्वकालिक भयंकर बीमारी का समूल नाश कर देने में सक्षम होंगे .
    
           यदि  AIDS  के साधारण लक्षणों की बात करें तो ये सब जानते हैं, कि एड्स का VIRUS (वायरस) शरीर के प्रतिरोधक तंत्र (IMMUNITY SYSTEM)  को धीरे - धीरे इतना कमजोर कर देता है, कि साधारण रोगों से लड़ने में भी वह सक्षम नहीं रह पाता है . अर्थात ज्योतिष की भाषा में कहें तो मंगल को धीरे - धीरे शक्तिहीन कर देता है, क्योंकि मंगल (MARS) ही हमारे  शरीर का सेनापति है और इसे ज्योतिष में  COMMANDER-IN-CHIEF कहा जाता है, जो शत्रुओं से रक्षा करने का कार्य करता है और एड्स का RETRO VIRUS इसी मंगल की शक्ति को क्षीण करने का कार्य करता है . सबसे मजे की बात तो यह है, कि यह वायरस मंगल से आमने सामने का युद्ध नहीं करता बल्कि रूप बदल - बदल कर युद्ध करता है ताकि इसे पहचाना नहीं जा सके . सभी जानते हैं कि एड्स का RETRO VIRUS  अपनी सभी स्थितियों को लगातार बदलता रहता है जिसके कारण हमारा सेनापति अर्थात 'श्वेत रुधिर कणिकाएं' (W.B.C.) इन्हें पहचान नहीं पाती हैं और इनके विरुद्ध एंटीबोडीज (ANTIBODIES)  का निर्माण नहीं हो पाता है, और ये लगातार शरीर सैन्य शक्ति का विनाश करते रहते हैं . क्या  आप जानना नहीं चाहेंगे कि शरीर के सेनापति मंगल के साथ कपट युद्ध  करने वाले ये वायरस किस ग्रह  का प्रतिरूप हैं. बिलकुल सही सोचा आपने ,ये है - " राहु ". अमृतपान के समय राहु  ही अपना रूप बदलकर देवताओं के मध्य जाकर बैठता  हैं . अतः रूप बदलने का गुण राहु  में पाया जाता है . ये कहा जा सकता है, कि एड्स मंगल और राहु  की लड़ाई है जिसमें राहु  की विजय प्रतीत होती है लेकिन एक बात यहाँ और जोड़ना चाहूँगा कि इस राहु  को  भगवान सूर्य और चंद्र  के द्वारा पहचान लिया गया था और भगवान नारायण को इस बात की सूचना दी गई  थी जिसके बाद भगवान् नारायण के द्वारा इसका सिर  काट दिया गया था . यदि ग्रहों के इस कारकत्व और पौराणिक कथाओं पर विचार किया जाये तो संभव है कि कहीं पर जाकर हमें मंगल, सूर्य, चंद्र और बृहस्पति के उपचार द्वारा ज्योतिष, योग और आयुर्वेद के मिश्रित प्रयासों द्वारा इसका उपचार प्राप्त हो जाये . ईश्वर से इसी प्रार्थना के साथ लेख को आंशिक विराम देता हूँ .



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