राम,🌞तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है। 🙏
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत महाकाव्य की ये पंक्तियाँ,✍ मानो सम्पूर्ण सनातन साहित्यिक कलेवर को निचोड़कर उसके अर्क रूप में उद्घोषित की गई हैं ।
श्रीराम की भक्ति में आकण्ठ डूबकर उनके चरित का वर्णन, काव्य में क्या इससे बड़ी कोई संभावना हो सकती है । ऐसा चरित जो आपको ब्रह्मा की सृष्टि के रसों से भी और आगे की मनोयात्रा पर ले चले, सामान्य तो नहीं हो सकता ।
श्रीराम के प्रांजल पादपद्मों से सुवासित, चरित रूपी सरोवर का नाद करते हुए कवि को ब्रह्मा से भी वृहद सृजनकर्ता होने का जो घोष तुलसी करते हैं, वह किसी सामान्य विषय पर लिखने वाला व्यक्ति नहीं कर सकता ।✍
रामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं -
विधि से कवि सब विधि बड़े जह मैं संशय नाहि ।
🌈
सठ् रस विधि की सृष्टि में नव रस कविता माहि ।।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण है "रामचरितमानस"
जो साहित्य और भक्त-जगत में उसी प्रकार शीर्ष पर अवस्थित है, जिस प्रकार नीलकंठ शिव की जटाओं में शशि 🌙 और श्रीकृष्ण के सिर पर मोर-पँख ।
बौद्धिक विलास, काव्य के आलंकारिक सौंदर्य तथा बड़े-बड़े बौद्धिक उपक्रमों के साथ यदि उपदेशात्मकता और आध्यात्मिक व आत्मिक आनंद की बात की जाए तो श्रीराम के जीवनचरित पर लिखे गए काव्य से श्रेष्ठ और क्या हो सकता है, जो आज सैकड़ों वर्षों से निरंतर काव्य-रसिकों और भक्तों द्वारा गाया जा रहा है (रामचरितमानस)🙏
मेरे हृदय से तो प्राणप्रभु श्रीराम के लिए बस यही पंक्तियाँ स्वतः स्फूर्त हुई हैं -
निष्प्राण माटी के दिये
जैसा रहा मेरा जीवन,
तुम्हारे बिन जलूँ कैसे
तुम्हीं तो प्राण - बाती हो ।
🙏
श्रीरामकृपाकांक्षी
◆लघु◆
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है। 🙏
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत महाकाव्य की ये पंक्तियाँ,✍ मानो सम्पूर्ण सनातन साहित्यिक कलेवर को निचोड़कर उसके अर्क रूप में उद्घोषित की गई हैं ।
श्रीराम की भक्ति में आकण्ठ डूबकर उनके चरित का वर्णन, काव्य में क्या इससे बड़ी कोई संभावना हो सकती है । ऐसा चरित जो आपको ब्रह्मा की सृष्टि के रसों से भी और आगे की मनोयात्रा पर ले चले, सामान्य तो नहीं हो सकता ।
श्रीराम के प्रांजल पादपद्मों से सुवासित, चरित रूपी सरोवर का नाद करते हुए कवि को ब्रह्मा से भी वृहद सृजनकर्ता होने का जो घोष तुलसी करते हैं, वह किसी सामान्य विषय पर लिखने वाला व्यक्ति नहीं कर सकता ।✍
रामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं -
विधि से कवि सब विधि बड़े जह मैं संशय नाहि ।
🌈
सठ् रस विधि की सृष्टि में नव रस कविता माहि ।।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण है "रामचरितमानस"
जो साहित्य और भक्त-जगत में उसी प्रकार शीर्ष पर अवस्थित है, जिस प्रकार नीलकंठ शिव की जटाओं में शशि 🌙 और श्रीकृष्ण के सिर पर मोर-पँख ।
बौद्धिक विलास, काव्य के आलंकारिक सौंदर्य तथा बड़े-बड़े बौद्धिक उपक्रमों के साथ यदि उपदेशात्मकता और आध्यात्मिक व आत्मिक आनंद की बात की जाए तो श्रीराम के जीवनचरित पर लिखे गए काव्य से श्रेष्ठ और क्या हो सकता है, जो आज सैकड़ों वर्षों से निरंतर काव्य-रसिकों और भक्तों द्वारा गाया जा रहा है (रामचरितमानस)🙏
मेरे हृदय से तो प्राणप्रभु श्रीराम के लिए बस यही पंक्तियाँ स्वतः स्फूर्त हुई हैं -
निष्प्राण माटी के दिये
जैसा रहा मेरा जीवन,
तुम्हारे बिन जलूँ कैसे
तुम्हीं तो प्राण - बाती हो ।
🙏
श्रीरामकृपाकांक्षी
◆लघु◆