Friday, April 13, 2018

"KP ASTROLOGY"

"KP ASTROLOGY"
"THE ASTROLOGICAL DIAMOND - FOUNDER OF KRISHNAMURTI PADDHATI "
                                          कर्मों की व्याख्या 

       कृष्णमूर्ति पद्धति के बारे में बात करने से पहले मैं बात करना चाहूँगा कर्म के सिद्धांत के बारे में जिसका उल्लेख प्रो. के. एस. कृष्णमूर्ति जी  ने अपनी पुस्तक "FUNDAMENTAL PRINCIPLES OF ASTROLOGY" में किया है!क्योंकि चाहे जीवन हो ज्योतिष ये सब कर्म ही तो हैं जो इनका निर्धारण करते हैं !जीवन और ज्योतिष में कर्मों के सम्बन्ध और महत्त्व को समझने लिए ही कर्मों के सिद्धांत को पहले समझना आवश्यक सा देख पड़ता है !कृष्णमूर्ति जी ने अपनी पुस्तक में में कर्मों की तीन श्रेणियों का जिक्र किया है ! 
1. दृढ़ कर्म       
2. दृढ़ दृढ़ कर्म          
3. अदृढ़ कर्म 
1. दृढ़ कर्म:- कर्म की इस श्रेणी में उन कर्मों को रखा गया है जिनको प्रकृति  के नियमानुसार माफ नहीं किया जा सकता !जैसे क़त्ल,गरीबों को उनकी मजदूरी न देना,बूढ़े माँ - बाप को खाना न देना ये सब कुछ ऐसे कर्म हैं जिनको माफ नहीं किया जा सकता ! ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में चाहे कितने ही शांति के उपाय करे लेकिन उसका कोई भी प्रत्युत्तर उन्हें देख नहीं पड़ता है ,चाहे ऐसे व्यक्ति इस जीवन में कितने ही सात्विक जीवन को जीने वाले  हों लेकिन उनको जीवन कष्टमय ही गुजरना पड़ता है वे अपने जीवन के दुखों को दूर करने के लिए विभिन्न ज्योतिषीय उपाय करते देखे जाते हैं लेकिन अंत में हारकर उन्हें यही कहने के लिए मजबूर होना पड़ता है,कि ज्योतिष और उपाय सब कुछ निरर्थक है ,लेकिन ये बात तो एक सच्चा ज्योतिषी ही  जानता है कि क्यों यह व्यक्ति कष्टमय जीवन व्यतीत करने को  बाध्य है !
2.दृढ़ अदृढ़ कर्म:-कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य कर्म होते हैं !जैसे कोई  व्यक्ति कोलकाता जाने लिए टिकट लेता है परन्तु भूलवश मुम्बई जाने वाली ट्रेन में बैठ जाता है !ऐसी स्थिति में टिकट चेक करने वाला कर्मचारी पेनल्टी के पश्चात उस व्यक्ति को सही ट्रेन में जाने की अनुमति दे देता है !ऐसे वैसे व्यक्ति सदैव ज्योतिष और इसके उपायों की तरफदारी करते नजर आते हैं !
3. अदृढ़ कर्म:-(नगण्य अपराध) ये वे कर्म होते हैं जो एक बुरे विचार के रूप में शुरू होते हैं और कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व ही विचार के रूप में स्वतः खत्म हो जाते हैं ! जैसे एक लड़का आम के बाग को देखता है और उसका मन होता है ,कि बाग से आम तोड़कर ले आये लेकिन तभी उसकी नजर रखवाली कर रहे माली पर पड़ती है और वह चुपचाप आगे निकल जाता है !यहाँ बुरे विचारों का वैचारिक अंत हो जाता है अतः ये नगण्य अपराध की श्रेणी में आते हैं और थोड़े बहुत साधारण शांति - कर्मों के द्वारा इनकी शांति हो जाती है ! ऐसे व्यक्ति ज्योतिष के विरोध में तो नहीं दिखते लेकिन इसके ज्यादा पक्षधर भी नहीं होते !
           ज्योतिष का एक जिज्ञासु विद्यार्थी होने के नाते कहना चाहूँगा कि सभी को अपनी दिनचर्या में साधारण पूजन कार्य और मंदिर जाने को अवश्य शामिल करना चाहिए क्योंकि ये आदत पता नहीं कितने ही  अदृढ़ कर्मों से जाने - अनजाने में छुटकारा दिला देती है !कर्म और भाग्य के विषय में इसी श्रृंखला के आगामी लेख में कर्म और भाग्य के रहस्य का पूर्ण सत्य विवरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न करूँगा !
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