Wednesday, July 6, 2011

ज्योतिष : पुरातन विवेचन :- आचार्य राज


आज बात कर रहा हूँ अपने पूजनीय गुरु श्री आचार्य राज द्वारा बताये गए एक पौराणिक किस्से का जिनका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक "सितारों के अक्षर किरणों की भाषा" में भी किया है ! एक बात गुरूजी की किताबों के बारे में भी बताना चाहूँगा कि इनकी किताबें वास्तव में प्रसिद्द लेखिका अमृता प्रीतम के साथ संवाद है जिनका स्वरुप बाद में पुस्तकमय कर इनको प्रकाशित किया गया है ! दिल्ली के "किताब घर" से इनका प्रकाशन होता है ! इनकी दूसरी पुस्तक का नाम है "सितारों के संकेत"जिसमें आचार्य का स्वप्न ज्योतिष का गूढ़ ज्ञान दृष्टिगोचर होता है ! पुनः विषय पर आगे बढते हैं,आचार्य ने अपनी पुस्तक में ज्योतिष के उद्गम का विवेचन किया है, जिसका जिक्र मैं यहाँ उन्हीं के शब्दों में करने का प्रयास कर रहा हूँ ! 
     ज्योतिष की उत्पत्ति वेदों से होती है या ऐसा  कहें कि ज्योतिष वेदों का ही एक अंग हैं जिसे वेदों के नेत्र की संज्ञा दी गयी है !क्योंकि देखने का सामर्थ्य नेत्रों में होता है और ज्योतिष भी देखने का कार्य करता है !इस प्रकार सृष्टि के आरम्भ में ज्योतिष पर मूलतः प्रजापति ब्रह्मा का स्वामित्व था !जब जगन्नियन्ता परम पिता परमात्मा के आदेश से उन्होंने इस जगत के निर्माण का कार्य शुरू किया तो सर्वप्रथम उन्होंने तप के द्वारा सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की !लेकिन कई युग बीत जाने पर उनके तप बल से आठ मानसिक पुत्रों को उन्होंने उत्पन्न किया !ये आठ पुत्र है सप्तर्षि और देवर्षि नारद !इसके बाद ब्रह्मा जी ने विचार किया कि इस प्रकार से मानसिक सृष्टि करने में तो करोड़ों युग बीत जायेंगे तो क्या किया जाय तब उनके मन में मैथुनी सृष्टि का विचार उत्पन्न हुआ ! उन्होंने अपने आठों पुत्रों को बुलाया और उनके समक्ष मैथुनी सृष्टि के विचार को रखा !उनके सात पुत्र तो मैथुनी सृष्टि स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए "ये थे सप्तर्षि" लेकिन उनका एक पुत्र ने मैथुनी सृष्टि को स्वीकार नहीं किया और वो थे "नारद"!तब मैथुनी सृष्टि के विचार को अपनाने वाले पुत्रों के लिए ब्रह्मा ने स्त्री के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया लेकिन काफी समय के बाद जब वे इस कार्य में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सके तो उन्होंने देवाधिदेव महादेव की शरण ली और महादेव ने प्रसन्न होकर पहले अर्धनारीश्वर रूप ग्रहण किया फिर नारी स्वरुप को अपने शरीर से अलग कर स्त्री जाति की उत्पत्ति की !इस प्रकार मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हो गयी !फिर ब्रह्मा जी ने विचार किया कि मेरे सात पुत्र तो मैथुनी सृष्टि स्वीकार करके मर्त्यलोक में निवास करने चले गए अब मैं नारद को क्या दूं इस प्रकार विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने नारद को वेदों में से ज्योतिष का ज्ञान प्रदान किया और नारद दैवज्ञ हो गए !दैवज्ञ वो होता है जो सात जन्म आगे और पीछे तक का ज्ञान ज्योतिष से प्राप्त कर लेता है !जब नारद भी इस कोटि को प्राप्त हो गए तो वह सदैव दैत्यों और देवताओं को आने वाले भविष्य के लिए पहले से ही सूचित करते रहते जिसके कारण कई बार सुनने को मिलता है , कि नारद ही देवताओं और दानवों को लड़ाने  का कार्य करते थे लेकिन वास्तव में नारद को सब कुछ पता होता था वो तो केवल आगाह करने का कार्य करते थे जो होना था वो तो निश्चित था !
             इस प्रकार ज्योतिष का पौराणिक  उद्गम "नारद पुराण"को माना जाता है !ऐसा कहा जता है , कि शुरुआत में इसमें 84 लाख श्लोक हुआ करते थे लेकिन वक्त की धुल में उड़ते - उड़ते ये श्लोक आज  नाम मात्र ही रह गए हैं !चाहें तो इस विषय पर ज्योतिषीगण नारद पुराण का पठन कर सकते हैं !  कहा जा सकता है कि वर्तमान में जो ज्योतिष का लेख विद्यमान है वह अपूर्ण है और सतत प्रयासों के द्वारा उनकी रचना पुनः करनी होगी !ज्योतिष को विभिन्न शाखाओं में विभाजन कर उनका तार्किक तरीकों से अध्ययन करना होगा !ज्योतिष फल बतलाने वाले पंडितों को ये बात समझनी होगी की विवाह की तिथी और नौकरी बताने वाला पंडित अचानक से बरसात का दिन ,चुनाव की जीत ,ज्वालामुखी का फटना आदि नहीं बता सकता क्योंकि ये ज्योतिष की अलग - अलग शाखाएं हैं लेकिन इस बात को समझे बिना पांडित्य को बरकरार रखने के लिए फलादेश किया जाता है और गलत होने पर पंडित जी के साथ साथ इस विषय को भी खामियाजा भुगतना पड़ता है !इसलिए बिना ज्ञान के ज्योतिष की विभिन्न शाखाओं में फलादेश करने से बचना चाहिए और पहले एक शाखा पर पूरी पकड़ करने का प्रयास करना चाहिए !मैं आह्वान करता हूँ भारत के उन सभी ज्योतिष से जुड़े लोगों का कि वो आगे बढे और जिस तरह से भी कर सकते हैं इस विषय को प्रामाणिक और उपयोगी बनाने में मदद करें ! गणेश जी हमें हमारे कार्य में सफल करे ! जय गणेश !

! जय गणेश ! 
! जय जय गणेश !!

1 comment:

  1. Pralabh Shrivastava:-- bahut acchi baaten likhi hain isme aapne sir....bahut bahut badhaiyaa itne acche lekh k liye ......

    ReplyDelete