Saturday, August 13, 2011

आखिर बुल्लेशाह फकीरी में रम गए


             

मनुष्य ईश्वर का ही अंश है इसलिए उसके अंतस में सदैव परब्रह्म का प्रतिबिम्ब विद्यमान रहता है!और मूल रूप से इसी प्रतिबिम्ब को साक्षात् प्राप्त कर लेना ही मनुष्य का लक्ष्य होता है लेकिन इस मायानगरी में प्रवेश करते ही सत्व,रज और तमोगुण के फंदे उसे इस प्रकार जकड लेते हैं,कि वह अपने प्रमुख लक्ष्य से विमुख हो जाता है!फिर भी मन में यदा-कदा ईश्वर को मिलने का विचार हिलोरें लेने लगता है,लेकिन यदि उस वक्त किसी श्रेष्ठ गुरु का सानिध्य प्राप्त हो जाये तो मनुष्य फकीरी की राह पर चलकर सबकुछ पा लेता है,अन्यथा जीवन भर सबकुछ पाकर भी फ़कीर ही बना रहता है!इसी सन्दर्भ में एक छोटी से घटना का उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ,जो इस बात को चरितार्थ करती है,कि श्रेष्ठ गुरु का क्या महत्व है!और साथ-साथ यह भी बताती है,कि श्रेष्ठ गुरु ईश-अनुकम्पा से ही प्राप्त होता है!
 फ़कीर बुल्लेशाह एक रियासत के बादशाह थे!पर उनकी सदैव इच्छा रहती थी,कि वे अपना मन अध्यात्म में लगाएं,पर ग्रह-योग उनका साथ नहीं दे पा रहे थे और वे बस मन में सोचकर ही रह जाते थे!एक दिन एक फ़कीर घूमते-घूमते उनके राजमहल में पहुंचा!
फ़कीर ने राजा से पूछ लिया:-ये किसकी सराय है?
 राजा ने कहा:-यह सराय नहीं है बल्कि महल है और आप इस राजमहल को सराय कह रहे हैं!
फ़कीर ने कहा:- तुमसे पहले यहाँ कौन रहता था?
राजा ने कहा:-हमारे वालिद और उनसे पहले उनके वालिद यानि हमारे दादा हुज़ूर रहा करते थे!
फ़कीर ने कहा:-जहां लोग आते-जाते रहे,कुछ समय ठहरकर लौट जायें वह सराय नहीं तो और क्या है!
पर बुल्लेशाह को वैराग्य की वो शक्ति नहीं मिली,कि वो बात को पूरी तरह समझ पाते!कुछ दिनों के पश्चात एक फ़कीर और आया और महल के बाहर बैठकर एक गगरी में हाथ डालकर कुछ खोजने लगा!बुल्लेशाह जब बाहर घूमने निकले तो फ़कीर से पूछा कि बाबा क्या खोज रहे हो?
फ़कीर:-बेटा मेरा ऊँट खो गया है बस उसीको ढूंढ रहा हूँ!
राजा:-ये आप क्या कह रहे हैं बाबा,गगरी में ऊँट कैसे आ सकता है जो आप उसे गगरी में खोज रहे हो!
तब फ़कीर ने कहा कि जब तू महल में बैठकर अल्लाह को ढूंढ सकता है,तो मैं गगरी में ऊँट क्यों नहीं ढूंढ सकता !
तब बुल्लेशाह का वैराग्य चरम पर पहुँच गया!कुछ समय बाद उन्होंने  राजमहल(सराय)छोड़ दिया!पंजाब आकर फ़कीर बन गए और ईश्वर रूपी सच्ची दौलत उन्हें प्राप्त हो गयी!
    जय गुरुदेव.

2 comments:

  1. "कभी कभी अपनी खुशी
    तुम्हारी मुस्कान का स्रोत है,
    लेकिन कभी कभी अपनी मुस्कान
    अपनी खुशी का स्रोत हो सकता है. "

    ~ Thich Nhat Hanh

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  2. कुछ लोग लापरवाही, घमंड और ईर्ष्या या किसी और कारण से दूसरों की अच्छाइयों की सराहना नहीं करते और न हीं उन्हें प्रेरित करते।

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