Saturday, June 16, 2012

एक अनोखा विचार

                                  एक अनोखा विचार 

जिस प्रकार से ब्रह्माण्ड का केंद्र जगन्नियन्ता सर्वशक्तिमान ईश्वर को मन जाता है और उसके बिना   इस सम्पूर्ण  का अस्तित्व मात्र भी संभव नहीं है !जिस प्रकार हमारे सौरमंडल का केंद्र सूर्य है!सूर्य ही है जो सभी ग्रहों,उपग्रहों और अन्य पिंडों को एक निश्चित नियम में बांधकर उन्हें घूर्णन के लिए सामर्थ्य प्रदान करता है,और उनके अस्तितत्व को बनाये रखता है !सूर्य के बिना सौरमंडल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है और यदि वर्तमान सौरमंडल में से सूर्य को हटाकर सौरमंडल की कल्पना करें तो सबकुछ बिखरा हुआ और तहस - नहस ही नज़र आएगा !उसी प्रकार इस केन्द्रत्व के नियम का सभी जगह पालन होता है !उदहारण स्वरुप जिस प्रकार चंद्र का केंद्र पृथ्वी है और पृथ्वी का केंद्र सूर्य ! सूर्य का केंद्र है आकाश गंगा !आकाश गंगा का केंद्र है ब्रह्माण्ड पालक परमब्रह्म !उसी प्रकार से घर-परिवार में, समाज में,राज्य में ,राष्ट्र में और विश्व में इसी प्रकार के एक प्रभावशाली केंद्र की आवश्यकता है जो सूर्य के सामान तेजस्वी हो और दूसरों को जीवनी शक्ति प्रदान करने का सामर्थ्य रखता हो ,जो पृथ्वी के सामान धैर्यवान हो ,जो आकाश गंगा के सामान विस्तार्युक्त हो और जो परमपिता के समान विशाल हृदय हो !जब तक केन्द्रत्व का ये समायोजन ठीक प्रकार से नहीं होगा तब तक ये अस्थिरता चलती ही रहेगी !उदहारण देखें जिस प्रकार परिवार का केंद्र होता है परिवार का मुखिया या पिताजी !यदि दुर्भाग्यवश वे न हों या उनका प्रभाव घर पर सूर्य के सामान न हो तो घर के सभी ग्रह अर्थात सदस्य किसी नियम में बंधे नहीं रह सकते हैं वे इधर - उधर बिखर जाते हैं औए स्वरचित नियम पालन करते हैं,समाज में कोई शीर्ष नेता न हो या कमजोर हो तो समाज वक्त के साथ नहीं चल पाता है इसीलिये "यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे"नियम के अनुसार इन सभी स्थानों पर इन केन्द्रधिपतियों का होना अत्यंत आवश्यक है !


                                                                                                                              -श्रीराम बिस्सा 

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