Saturday, August 13, 2011

शिव का तीसरा नेत्र :- एक रहस्य


जब कभी भी अध्यात्मिक चर्चाओं का दौर चल पड़ता है और उसी प्रवाह में भोलेनाथ अर्थात शिव के बारे में बात होने लगे तो एक तस्वीर मानस-पटल पर साफ़ रहती है,कि,शिव बड़े ही भोले देवता हैं,लेकिन क्रोधित होने पर वे तांडव करने लगते हैं,नृत्य के चरम पर उनके ललाट पर स्थित उनका तीसरा नेत्र खुलता है और सबकुछ भस्म!अब बात करें तीसरे नेत्र की तो क्या वास्तव में शिव के ललाट पर दो नेत्रों के समान तीसरा नेत्र होता है!अगर होता भी है तो उसमें ऐसा क्या है,कि वह केवल क्रोध आने पर ही खुलता है सामान्य अवस्था में बंद रहता है!                                                                                                          मैंने इस बारे में कुछ अलग विचार करना प्रारंभ किया और सोचते-सोचते आज दस पंक्तियों का विचार पककर तैयार हुआ सो आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ!ये मेरा व्यक्तिगत विचार है,ऐसा ही होता हो आवश्यक नहीं!आशा है पाठकगण इसमें आवश्यकता होने पर सुधार का प्रयास करेंगे!    यदि आदिकाल से शुरू करें तो सृष्टि के आरम्भ में केवल पुरुषों की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की!ब्रह्मा जब स्त्री की उत्पत्ति नहीं कर पाए तो उन्होंने शिव से प्रार्थना की तो शिव  ने आदिशक्ति माया(योगमाया) को स्त्री के रूप में उत्पन्न कर अपने शरीर से अलग किया और इसी माया ने स्त्री जाति का निर्माण किया!अतः स्त्री वास्तव में माया का ही प्रतिबिम्ब है!यह माया सदैव पुरुषों के ललाट पर ही निवास करती है,जैसे ही पुरुष के शरीर,नेत्र या मानसिक विचारों का संसर्ग स्त्री स्वरुप के साथ होता है,तो उसकी छवि सर्वप्रथम मनुष्य के ललाट पर जाकर स्थित हो जाती है!ललाट पर ही मनुष्य का ज्ञान -चक्षु स्थित होता है और यह छवि ललाट पर जाकर मनुष्य के ज्ञान-चक्षुओं पर पर्दा डाल देती है,जिसके कारण उसके दिमाग कुछ भी सोचने-विचार करने का सामर्थ्य समाप्त हो जाता है,कि वह जो कर रहा है वह सही है या गलत!उस समय केवल अंतरात्मा ही ये सन्देश देती है,कि तू जो कर रहा है वह गलत है लेकिन मष्तिष्क इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होता,क्योंकि वह तो माया की चपेट में होता है!अतः विचार किया जा सकता है,कि ललाट पर स्थित चक्षु कोई सामान्य नहीं बल्कि ज्ञान का बोध करवाने वाला नेत्र होता है!चूंकि साधारण मनुष्य माया के आवरण से पूर्णतया लिप्त रहता है अतः उसके ललाट पर इसका कोई अंश भी दृष्टिगोचर नहीं होता है!अब जब माया साधारण मनुष्य पर अपना त्रिगुणात्मक फंदा डालती है,तो वह पूर्णतया उसकी चपेट में आ जाता है पर जब यही प्रभाव कोई शिव पर करने का प्रयत्न करे तो वह ज्ञान रूपी अग्नि से जलकर भस्म हो जाता है!जिस प्रकार कामदेव हो गया था,जिसने शिव की माया का प्रयोग उन्हीं पर करने का प्रयत्न किया!शिव का तीसरा नेत्र शरीर मैं आज्ञा चक्र के केंद्र में स्थित है जहां विवेक बुद्धि का निवास होता है!देखा जाए तो शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान पुंज है,जो अज्ञान रूपी अंधकार को जलाकर भस्म कर देता है!"साधारण रूप में देखें तो शिव ईश्वर हैं और बुरे लोगों को अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से जलाकर भस्म कर देते है और यदि अलग तरह से देखने का प्रयत्न करें तो शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान पुंज है जो अज्ञान का नाश करता है!"तो चलो तीसरा नेत्र हम भी प्राप्त करें!

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