Wednesday, May 18, 2011

साधारण दिनचर्या में योग

                        !! प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे !!
        अर्थात - "मैं प्राण को प्रणाम करता हूँ इस प्राण के वश में ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है ! यदि प्राण को वश में कर लिया जाये तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को वश में किया जा सकता है !"
   आज मेरा विषय है योग जिसके बारे में प्रत्येक हिन्दू ये गर्व करता है , कि योग भारत की देन है ! लेकिन योग का अभ्यास कितने भारतीय नियमित रूप से करते हैं ??? इसका कारण शायद ये भी हो सकता है , कि आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में लोगों के पास योग को देने के लिए अधिक समय न हो ! या फिर ये भी हो सकता है , कि अपनी भारी - भरकम तनख्वाह वाली नौकरी के आगे वे योग को एक तुच्छ चीज मानते हो या और भी कई कारण हो सकते हैं जो हमें इस पूर्ण रूपेण भारतीय विज्ञान पर केवल झूठा गर्व करना ही सिखाता है उसका निरंतर अभ्यास करना नहीं ! हो सकता है , कि कई लोगों को ये बात अच्छी ना लगे लेकिन ये वास्तविकता है ! यदि बाबा रामदेव से पहले का समय याद करें तो सच्चाई समझ आ जायेगी ! खैर मेरे लेख का विषय योग का सरलीकरण पेश करना है , जो कई महापुरुषों ने अपने जीवन में प्रयुक्त किया है ! और शायद आप सब के भी काम आ सके क्योंकि मैं भी कम समय में ही योग का अभ्यास करने के लिए इस योग सारणी का अभ्यास करता रहा हूँ !
         इस योग सारणी का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो किसी भी पेशे में हो आसानी से कर सकता है !
                   प्राणायाम के तीन कवच ( बंधत्रय )
               इन्हें योग की भाषा में बंधत्रय कहा जाता है , लेकिन मैंने "कवच" नाम इसलिए दिया है , क्योंकि ये शरीर से बाहर जाने वाली ऊर्जा को रोककर उसे अंतर्मुखी करने का कार्य करते हैं ! प्राणायाम शुरू करने से पहले इनका अभ्यास करना अत्यंत ही लाभदायक रहता है ! शुरुआत में ४ मिनट फिर धीरे - धीरे ८ मिनट तक का समय दिया जा सकता है !
१ . जालंधर बंध :- पद्मासन में बैठकर श्वास अन्दर भरें , दोनों हाथ घुटनों पर टिकाकर ठोडी को कंठकूप पर लगाएं छाती को आगे के और तान कर रखें और दृष्टी भ्रूमध्य में स्थिर करना ही जालंधर बंध है !( एक मिनट )
२ . उड्डीयान बंध :- खड़े होकर दोनों हाथों को घुटनों से लगाकर श्वास बाहर छोडें और पेट को ढीला छोड़कर छाती को ऊपर उठाएं ! पेट को कमर से लगा दें ! शुरुआत में तीन बार पर्याप्त है !
३ . मूलबंध :- पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर गुदाभाग और मूत्रेन्द्रिय को ऊपर के और आकर्षित करें ! ( एक मिनट )
४ . महा बंध :- तीनों बंध एक साथ लगाएं ! ( एक मिनट )
                       अब प्राणायाम शुरू करते हैं :--
१ . भस्त्रिका :- सुविधानुसार बैठकर दोनों नासिकाओं से श्वास को डायफ्राम तक भरना और सहजता से बाहर छोड़ना ही भस्त्रिका है ! एक मिनट में १२ बार होता है ५ मिनट प्रतिदिन करें !
   * HIGH B.P. वाले तेजी से ना करें ! ( ५ मिनट )
२ . कपालभाति :- श्वास को भरने के लिए विशेष प्रयत्न ना करें बल्कि जितना श्वास सहजता से अन्दर चला जाता है उसे पूरी एकाग्रता के साथ बाहर निकलने का प्रयत्न करें !एक मिनट ,में ४५ बार ५ मिनट करें ( ५ मिनट )
३ . अनुलोम - विलोम :- इससे कई लोग परिचित होंगे बहुत ही प्रसिद्ध प्राणायाम है ! लेकिन ये प्रसिद्ध ऐसे ही नहीं है,इसकी विशेषताएं ही ऐसी हैं ! पद्मासन में बैठकर दोनों हाथ को उठाकर अंगूठे के द्वारा दायीं नासिका को बंद करें और अनामिका और मध्यमा अँगुलियों के द्वारा (अंगूठे से दूसरी और तीसरी) बायीं नासिका को बंद करें और श्वास लेकर छोड़ने का क्रम प्रत्येक नासिका के द्वारा करें ! विशेष :- (इस प्राणायाम को करने से ७२ लाख ७२ हज़ार १० हज़ार २१० नाडिया शुद्ध हो जाती हैं !)
४ . भ्रामरी :- श्वास को पूरा अन्दर भरकर दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों कानों को बंद कर लें और मध्यमा अंगुलिओं के द्वारा नासिका मूल को दबाएँ फिर भंवरे की तरह गुंजन करते हुए नाद रूप में "ॐ" का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोडें !( ५ मिनट ) ( विशेष:- डिप्रेशन , माइग्रेन और नेत्र रोग में लाभदायक )
५ . उदगीथ :- ३ से ६ सेकण्ड में श्वास को एक लय क साथ अन्दर भरना और १८ से २० सेकण्ड में बाहर छोड़ना ! (५ मिनट )
*** भ्रामरी और उदगीथ से किसी प्रकार की हानि होने की सम्भावना नहीं है !
६ . ध्यान :- अंत में ५ मिनट मौन रहकर समस्त विचारों को मन से निकालकर शिव का ध्यान करें ! ( ५ मिनट )
             ये पूरा अभ्यास ३४ मिनट का है , यदि अधिक समय लग तो ४० मिनट का समय मन जा एकता है लेकिन ये समय आपके जीवन को नयी ऊर्जाओं से भर देगा !
समय के साथ - साथ इन अभ्यासों के समय व संख्याओं को बढाया भी जा सकता है !
आज के इस लेख में मैं केवल अपनी दिनचर्या में शामिल करने योग्य नियमित योग सारणी का ही उल्लेख किया है , लेख का कलेवर अधिक विस्तृत ना हो जाये इसलिए इनके लाभ या अन्य बातों का उल्लेख नहीं किया और भाषा को भी अति संक्षिप्त रखने का प्रयास किया है , यदि इसमें फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि रह गयी हो तो पाठक गण मेरा सहयोग करेंगे ऐसी आशा करता हूँ !साथ ही कुछ हिदायतें भी है अपनाने के लिए ! प्राणायाम का अभ्यास हमेशा स्वच्छ स्थान पर किया जाना चाहिए !आसन कुचालक यथा कम्बल या कुशा का होना चाहिए !
            सबसे महत्वपूर्ण बात ये , कि योग का अभ्यास करते समय धैर्य रखना चाहिए क्योंकि उतावलापन समस्याएं उत्पन्न कर सकता है !
              यथा सिंहो गजो व्याघ्रो भवेद वश्यः शनैः शनैः !
                  तथैव वश्यते वायुरन्यथा हन्ति साधकं !!
    अर्थात जिस प्रकार शेर , बाघ और हाथी जैसे प्राणियों को धीरे - धीरे वश में किया जाता है वरना ये हमला भी कर सकते हैं , उसी प्रकार प्राणायाम को धीरे - धीरे बढ़ाते हुए प्राण को वश में करना चाहिए !
        योग का अभ्यास करने वाले या ना करने वाले सभी को गीता का ये श्लोक अवश्य व्यवहार में लाना चाहिए :-
                                             
                         युक्ताहर्विहरास्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु !
                    युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवती दु:खहा !!
                   अर्थात जिसका आहार - विहार ठीक है , जिस व्यक्ति की निश्चित दिनचर्या है और जिसका सोने जागने का समय भी निश्चित है , ऐसा व्यक्ति ही योग कर सकता है और उसका योग का अनुष्ठान दु;खों का नाशक बनता है !
           आवश्यकता और रुझान महसूस होने पर आगे भी इस विषय पर चर्चा करने का प्रयत्न किया जाएगा तथा अलग - अलग रोगों के लिए योग और आयुर्वेद के नियमों का विचार करने का प्रयास करेंगे !
   आज का टिप :- राहू गन्दगी है,अतः रIहू का प्रभाव रहने पर व्यक्ति को जितना अधिक साफ़ - सुथरा रखने का प्रयत्न किया जाएगा मंदिरों में ले जाया जाएगा या आग के समीप वाले स्थानों पर ले जाने का प्रयत्न किया जाएगा उसके लिए उतना ही अच्छा है ! ये कार्य किसी दूसरे के द्वारा किया जाये ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि वो स्वयं ऐसा कभी करना नहीं चाहेगा ! और कभी मानने को तैयार नहीं होगा कि वो किसी दुष्प्रभाव में है !
! जय गणेश !
!! जय जय गणेश !!

7 comments:

  1. कुछ दिन अभ्यास करके देखें काफी सकारात्मक उर्जा का अनुभव करेंगे !

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  2. Yog ke bare bahut achchha jankari di hai apne. Pratyek byakti ko ise apne dicharya me shamil kar aadat bana leni chahiye.

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